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आज हमारे देश ने एक ऐसी बीमारी से पार पा लिया है, जिसने भारत के भविष्य को लगभग अपनी चपेट में ले ही लिया था. पोलियो एक ऐसी बिमारी है जो बचपन में अगर किसी को लग जाए तो सारे जीवन को मोहताज बना देती है. दूसरों के अहसानों के तले दबा देती है. आज हमारे लिए बड़ी ख़ुशी का मौका है. हमने पोलियो को मात दे दी है, पिछले तीन सालों से पोलियो का एक भी मामला सामने न आने पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत को पोलियो मुक्त घोषित कर दिया है. आज से लगभग 29 साल पहले हम चेचक से मुक्ति पा सके थे. तभी हमने पोलियो को समूल नष्ट करने का संकल्प लिया था. 1985 में पल्स पोलियो अभियान की शुरुआत हुई थी. तब से धीरे धीरे करके हमने अपने बचपन को अपंग होने से बचाना आरम्भ किया. और आज हमे वो कामयाबी हासिल हुई है. आखरी मामले की बात करें तो पश्चिम बंगाल की रुखसार इस भयावह बिमारी कि आखरी शिकार थी, उसके बाद से लगभग पिछले तीन सालों से एक भी नया मामला सामने नहीं आया है, जो अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है. स्वास्थ्य के क्षेत्र में हमने एक नया मुकाम पा लिया है. पोलियो उन्मूलन के लिए सरकार ने आरम्भ से ही जमकर काम किया है. सरकार के साथ साथ गैर सरकारी संगठनों की भूमिका भी यहाँ अहम् रही है. जहां 2009 तक पूरी दुनिया के आधे से अधिक मामले भारत के दर्ज किये जा रहे थे, वही भारत आज पोलियो का खात्मा कर चुका है.
एक दैनिक अखबार के माध्यम से जानकारी मिली कि इस मुहीम में 24 लाख वालंटियर और डेढ़ लाख कर्मचारियों को एकजुट किया गया था, जिसके बाद जोरों से कार्य शुरू हुआ. और पूरे देश में घर घर जाकर पोलियो टीकाकरण अभियान और दवा पिलाई गई, किसी भी बच्चे को भुला नहीं गया. ढूंढ ढूंढकर हर बच्चे को इसका शिकार होने से बचाया गया. देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यहाँ हम सब एक हैं. कोई किसी का दुश्मन नहीं है, कहीं कोई भ्रष्टाचार नहीं है, सरकारी हो या गैर सरकारी सभी संगठन एकजुट होकर कार्य करते दिखे. अगर ऐसा ही हर क्षेत्र में होने लगे तो ज़रा कल्पना करिए कैसा होगा हमारे देश का भविष्य? इस मुहीम को देखकर वह नारा साकर होता दिखा जो इस मुहीम के शुरू होने पर सामने आया था, ‘कोई मैया रूठे नहीं और कोई बच्चा छूटे नहीं’ और वाकई ही हमने इस नारे को साकार रूप दिया, पोलियो का खात्मा करने में बड़ी कामयाबी पाई.
1985 से लेकर आज तक यानी इन 29 सालों के दौरान आंगनबाड़ी केन्द्र की सेविका, सामाजिक कार्यकर्ताओं आदि ने घर-घर जाकर हर बच्चे को पोलियो की खुराक पिलाई जिसके परिणाम स्वरुप हम यहाँ तक पहुंचे हैं, अब यहाँ सवाल खड़ा हो जाता है कि क्या इस सभी के सहयोग के अभाव में हम इस मुकाम को आने में कामयाब हो जाते तो जवाब होगा नहीं. ये साफ़ तौर पर दर्शाता है कि हमें आगे भी बड़ी बीमारियों से लड़ने के लिए इसी तरह के सहयोग और जागरूकता की आवश्यकता है.
हालांकि हमने पोलियो मुक्त भारत का दर्जा तो हासिल कर लिया है, मंगल पर भी हम जा पाने में सक्षम हो गए हैं. हमारे देश को आज वो मुकाम हासिल हो गया है जिसके चलते आज हम किसी भी दूसरे देश को चुनौती दे सकते हैं. कम शब्दों में अगर कहें तो हमने बड़े महत्त्वपूर्ण सफलताएं अर्जित कर ली हैं. पर क्या हम पूरी तरह वो कामयाबी पाने में सफल हुए हैं जो हमारी जनता के लिए सबसे अधिक हितकारी है? क्या हम स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधर कर पाएं हैं? आज खुशियाँ मनाने का पल है. पर एक चुनौती और है जो हमारे सामने खड़ी है. वो है हमारे देश में कुपोषण की समस्या. आज हम कुपोषण से बड़े पैमाने पर ग्रस्त हैं. खासकर ग्रामीण इलाकों में तो ये समस्या गम्भीर रूप ले चुकी है. टीवी के माध्यम से आजकल एक विज्ञापन बड़ा चलाया जा रहा है. कुपोषण के खात्मे के लिए विभिन्न उदाहरण देकर लोगों में जागरूकता फैलाई जा रही है. पर पोषण से युक्त भोजन आयेगा कहाँ से ये नहीं बताया जा रहा है. माँ कि सुरक्षा होगी कैसे, अस्पताल तो गर्भवती महिलाओं के साथ ऐसा बर्ताव कर उन्हे भगा रहे हैं कि वे मजबूर हैं अपने बच्चों को सडकों पर जन्म देने को. गरीबी इतनी है कि कुछ करके भी पोषण युक्त खाना नहीं मिल रहा है. तो क्या उस विज्ञापन को केवल उन लोगों केलिए चलाया जा रहा है. जो पोषण युक्त भोजन जुटा सकते हैं. और जो नहीं जुटा सकते उनका क्या? ये कुछ सवाल हैं जो पोलियो मुक्त भारत की खुशियों में कुछ खटास पैदा कर देते हैं. साफ़ हैं हमें बाकी क्षेत्रों में भी ऐसे ही अभियान चलने कि जरुरत हैं. एकजुट होकर काम करने से हम कुपोषण और बच्चों में होने वाली बाकी बीमारियों से भी पार पा सकते हैं. बस जरुरत हैं पोलियो जैसा जागरूकता दिखाने की. आशा है भारत आमे वाले समय में अपने सभी क्षेत्रों में एक मुकाम हासिल करेगा और हमें यह कहने में गर्व होगा कि हम उस देश में रहते हैं जहां का बचपन स्वस्थ है. किसी बिमारी से ग्रस्त नहीं है.
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